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मैं रोज शाम को छत पर तुम्हें निहारने जाता हूं। तुम

मैं रोज शाम को छत पर तुम्हें निहारने जाता हूं।
तुम्हें देख अपनी नज़रें झूकाकर बड़ा शरमता हूं।।
जब तुम भी देखती मुझे मैं खुशी से उछल जाता हूं।
मेरे अलाबा तुम्हें कोई और देखे बस इसी बात से घबराता हूं।।
हां मैं रोज शाम को छत पर सिर्फ तुम्हें हिं देखने आता हूं।।



✍️कौशल har sham ko
मैं रोज शाम को छत पर तुम्हें निहारने जाता हूं।
तुम्हें देख अपनी नज़रें झूकाकर बड़ा शरमता हूं।।
जब तुम भी देखती मुझे मैं खुशी से उछल जाता हूं।
मेरे अलाबा तुम्हें कोई और देखे बस इसी बात से घबराता हूं।।
हां मैं रोज शाम को छत पर सिर्फ तुम्हें हिं देखने आता हूं।।



✍️कौशल har sham ko