क़िस्मत है मेरी जो आज है, हक़ीक़त तो मेरी कब की, ख़्वाब बनकर चली गई, अब इसे मेरी क़िस्मत कहो या हक़ीक़त, लेकिन दोनों से रूबरू जरूर हुआ में। क़िस्मत में थी वह इसीलिए तो मिली मुझे, लेकिन हक़ीक़त ना बन पायी वह मेरी, क़िस्मत भी देखो अजीब है मेरी, जिसको चाहा मैंने वही मेरा ना हुआ। अब इसे मेरी क़िस्मत समझूँ या, फिर हक़ीक़त दोनों एक ही है, क़िस्मत से जो मिला था मुझे, हक़ीक़त ने छीन लिया उसे। क़िस्मत और हक़ीक़त दोनों पहलू है जिंदगी के, क़िस्मत में जो लिखा है, वह हक़ीक़त ही बने ऐसा हरगिज़ नहीं, कभी कभी हक़ीक़त भी हमारी, एक ख़्वाब बनकर ही रह जाती है। -Nitesh Prajapati ♥️ Challenge-915 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।