ख़ुद को शिनाख़्त करने की दिल-ए-आरज़ू ख़ूब रही, दौर-ए-मसरूफ़ियत में क्या उलझें उलझतें चले गए। क्यों करें दूसरों को शिनाख़्त ख़ुद से महरूम रह रह कर, जो ख़ुद से न मिल सकें तो किसी और से क्या मिल सकेंगे। #hindipoetry #twoliner #nazarbiswas