एक सफ़र मंजिलों की ओर अभी तो सफ़र शुरू किया है अभी से थक कर रुकना क्या है अभी तो चंद कदम ही बड़े है मन्जिलो की ओर अभी से पीछे मुड़ना क्या है अभी तो ऊँचे-ऊँचे पहाड़ है मुश्किलों के चढ़ने के पहले ही घबराना क्या है अभी तो ना जाने कितनी रातों से लड़ना है मुझको अपनी मन्जिलो को पाने के लिए इन खामोश सी रातों से डरना क्या है आधी जिन्दगी गुजार दी उलुल-जुलुल सी बातो मे अब इन बातों मे पड़ना क्या है गर सपनो के बिन ही जिन्दा हो तो मर चुके हो तुम जीना इसको कहते हैं तो मरना क्या है R. K. Yadav #ek सफ़र मंजिलों की ओर #Books