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तन्हा ही ये उम्र गुजर रही है अब तो हर पल आस घट रही

तन्हा ही ये उम्र गुजर रही है
अब तो हर पल आस घट रही है
मिट रही है गहराइयाँ हमारे रिश्तों की
बस दिखावे से भरी लग रही हैं

बचपन से सम्भाला जिन्हें
आज वो दूर नजर आ रहे हैं
देखते देखते वक़्त के साथ
अपने भी पराये होते जा रहे हैं

कसक न जाने कैसी 
सबके मन में समा रही है
झुकना नहीं है किसी को
इस बात की पीड़ा सता रही है

ख्वाब सबके थे अब अपने हो रहे है
समन्दर की हर बून्द को अब झगड़े हो रहे है
देखो कैसी ये घड़ी आई है
आज ज़िन्दगी सबकी खतरे में समाई है।

©Priya Singh
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