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दिमाग नहीं दिल लगाना पड़ता हैं अब रिश्तों को बनाए

दिमाग नहीं दिल लगाना पड़ता हैं
अब रिश्तों को बनाए रखने के लिए
कभी कभी रोना भी पड़ता हैं
बनी रहे घर के आंगन मैं रौनक
इस लिए दिल में हजार गम हो फिर भी
महफ़िल में मुस्कुराना ही पड़ता है
जाये न घर की दीवारों से मुस्कुराहट...
इसलिए खुद के सपने को भी जलाना पड़ता हैं
सौ न जाए घर के बच्चे भूखे प्यासे
इसलिए बाप को खड़ी धूप में जलना भी पड़ता हैं...

©maher singaniya दिमाग नहीं दिल लगाना पड़ता है...
दिमाग नहीं दिल लगाना पड़ता हैं
अब रिश्तों को बनाए रखने के लिए
कभी कभी रोना भी पड़ता हैं
बनी रहे घर के आंगन मैं रौनक
इस लिए दिल में हजार गम हो फिर भी
महफ़िल में मुस्कुराना ही पड़ता है
जाये न घर की दीवारों से मुस्कुराहट...
इसलिए खुद के सपने को भी जलाना पड़ता हैं
सौ न जाए घर के बच्चे भूखे प्यासे
इसलिए बाप को खड़ी धूप में जलना भी पड़ता हैं...

©maher singaniya दिमाग नहीं दिल लगाना पड़ता है...