बदलते वक़्त ने सब का रँग-ढंग मिज़ाज़ बदल दिया, गुज़रता था बचपन नानी-दादी के किस्से सुनते-सुनाते! परिवार टूटे प्यारे रिश्ते छूटे, छूटा वो चहकता बचपन, ख़ामोश बचपन के, गुज़रते नहीं दिन अब हँसते-हँसाते! समय सीमा : 21.01.2021 9:00 pm पंक्ति सीमा : 4 काव्य-ॲंजुरी में आपका स्वागत है। आइए, मिलकर कुछ नया लिखते हैं,