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काम, क्रोध और लोभ जब से मनुष्य इनके वश में होते है

काम, क्रोध और लोभ
जब से मनुष्य इनके वश में होते हैं तभी से वे अपने विचार, आचरण और भावों में गिरने लगते हैं। इन तीनों के कारण उनसे ऐसे कर्म होते हैं, जिनसे उनका शारीरिक पतन हो जाता है, मन बुरे विचारों से भर जाता है, बुद्धि बिगड़ जाती है क्रियाएं दूषित हो जाती हैं जिसके फलस्वरूप उनका वर्तमान जीवन सुख , शांति और पवित्रता से रहित होकर दुःखमय बन जाता है अतः इन तीनों का त्याग करना चाहिए।
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श्रीमद्भगवद्गीता
अ०१६/२१  #गीता
काम'क्रोध और लोभ का त्याग करें।
काम, क्रोध और लोभ
जब से मनुष्य इनके वश में होते हैं तभी से वे अपने विचार, आचरण और भावों में गिरने लगते हैं। इन तीनों के कारण उनसे ऐसे कर्म होते हैं, जिनसे उनका शारीरिक पतन हो जाता है, मन बुरे विचारों से भर जाता है, बुद्धि बिगड़ जाती है क्रियाएं दूषित हो जाती हैं जिसके फलस्वरूप उनका वर्तमान जीवन सुख , शांति और पवित्रता से रहित होकर दुःखमय बन जाता है अतः इन तीनों का त्याग करना चाहिए।
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श्रीमद्भगवद्गीता
अ०१६/२१  #गीता
काम'क्रोध और लोभ का त्याग करें।

#गीता काम'क्रोध और लोभ का त्याग करें।