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कायर और कपूतों की ना अब हमको दरकार रही उठो हमारे व

कायर और कपूतों की ना अब हमको दरकार रही
उठो हमारे वीर सपूतो अब दुष्टों का संहार करो
जो घर में छुपकर बैठे अपनी इज्जत लुटती देख रहे
डूब मरो चुल्लू भर पानी में या अब कोई अवतार धरो 
माँ दुर्गा और भवानी रोती भारत माँ की छाती टूटी 
कब तक तुम निष्प्राण रहोगे अब तरकस में बाण भरो
ट्विंकल और दामिनी देखी लक्ष्मी और कामिनी देखी 
आंखों में खून नहीं लाये तुम कुए में जाकर कूद मरो
धरने देकर शमां जलाकर अब वक्त न तुम बर्वाद करो 
कहदो सरकारों से अपनी या संविधान को ताक धरो
उठो धरा के वीर पहरुओं अब कर में तलवार भरो  कोई सोचकर देखे कि “ट्विंकल” की मां क्या सोच रही होगी- कि लड़की उसके पेट से पैदा ही क्यों हुई। उसे कौनसे कर्म की सजा मिली है। आज देश में रोजाना कितनी ट्विंकल इस पीड़ा से गुजर रही हैं। सम्पूर्ण लोकतंत्र- विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका मौन है। स्वयं को चौथा स्तंभ कहने वाला मीडिया दोगला व्यवहार करता हुआ दिखाई पड़ रहा है। उसे देश में होते सैंकड़ों गैंग रेप दिखाई नहीं देते। तीनों स्तंभों के मौन को सहज मान रहा है। क्यों?
:
समरथ को नहीं दोष गुसांई। दर्जनों जनप्रतिनिधि और अधिकारी आज भी ऎसे अपराधों के बाद आराम से घूम रहे हैं। सत्ता का उन्हें पूर्ण अभयदान प्राप्त है। उनके लिए कानून तो मानो है ही नहीं। पहले तो पुलिस छोड़ देती है, वह पकड़े तो कानूनी लचीलेपन का फायदा उठाकर बच निकलते हैं। कानून में भी आमूल-चूल बदलाव अपेक्षित है। गैंगरेप और बलात्कार के दोषियों को तो फांसी की सजा अनिवार्य कर देनी चाहिए। बलात्कार की घटनाएं कुछ झूठी भी निकल जाती हैं। प्रमाणित हो जाने पर इसमें भी आजीवन कारावास तो होना ही चाहिए। कानून निर्माताओं को ध्यान में रखना चाहिए कि दहेज, यौन-शोषण के साथ-साथ बलात्कार वह मुख्य कारण है जो एक मां को कन्या भू्रण हत्या के लिए मजबूर करता है। कौन मां अपनी बच्ची को ऎसे दानवों एवं सरकारी दबावों (अस्मत देने के) के भरोसे बड़ा करना चाहेगी?
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सत्ता के चारों ओर बस धन, माफिया,भोग,हत्या ही बचे हैं। जीवन शरीर पर आकर ठहर गया है। दर्शन पुस्तकों में, कर्म और कर्म-फल गीता में तथा पुनर्जन्म का भय टी.वी.-सत्ता ने भुला दिया है।
:जब यह सुना तो रोक नहीं पाया मैं खुद को यह सब लिख डाला आज देश को गुलाब कोठारी जी की बातों पे अमल करने की जरूरत है कब चेत पाओगे जागो अभी भी वक्त है आने वाले समय में यह और खतरनाक न हो इसलिए अब हमारी सरकारों को शख़्त क़दम उठाने ही पड़ेंगे !😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢
मन तो गाली देने का है पर संस्कार इजाज़त नहीं देते ! पागल कुत्तों को गोली मार कर मौत के घाट उतार देना ही बेहतर है ।
कायर और कपूतों की ना अब हमको दरकार रही
उठो हमारे वीर सपूतो अब दुष्टों का संहार करो
जो घर में छुपकर बैठे अपनी इज्जत लुटती देख रहे
डूब मरो चुल्लू भर पानी में या अब कोई अवतार धरो 
माँ दुर्गा और भवानी रोती भारत माँ की छाती टूटी 
कब तक तुम निष्प्राण रहोगे अब तरकस में बाण भरो
ट्विंकल और दामिनी देखी लक्ष्मी और कामिनी देखी 
आंखों में खून नहीं लाये तुम कुए में जाकर कूद मरो
धरने देकर शमां जलाकर अब वक्त न तुम बर्वाद करो 
कहदो सरकारों से अपनी या संविधान को ताक धरो
उठो धरा के वीर पहरुओं अब कर में तलवार भरो  कोई सोचकर देखे कि “ट्विंकल” की मां क्या सोच रही होगी- कि लड़की उसके पेट से पैदा ही क्यों हुई। उसे कौनसे कर्म की सजा मिली है। आज देश में रोजाना कितनी ट्विंकल इस पीड़ा से गुजर रही हैं। सम्पूर्ण लोकतंत्र- विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका मौन है। स्वयं को चौथा स्तंभ कहने वाला मीडिया दोगला व्यवहार करता हुआ दिखाई पड़ रहा है। उसे देश में होते सैंकड़ों गैंग रेप दिखाई नहीं देते। तीनों स्तंभों के मौन को सहज मान रहा है। क्यों?
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समरथ को नहीं दोष गुसांई। दर्जनों जनप्रतिनिधि और अधिकारी आज भी ऎसे अपराधों के बाद आराम से घूम रहे हैं। सत्ता का उन्हें पूर्ण अभयदान प्राप्त है। उनके लिए कानून तो मानो है ही नहीं। पहले तो पुलिस छोड़ देती है, वह पकड़े तो कानूनी लचीलेपन का फायदा उठाकर बच निकलते हैं। कानून में भी आमूल-चूल बदलाव अपेक्षित है। गैंगरेप और बलात्कार के दोषियों को तो फांसी की सजा अनिवार्य कर देनी चाहिए। बलात्कार की घटनाएं कुछ झूठी भी निकल जाती हैं। प्रमाणित हो जाने पर इसमें भी आजीवन कारावास तो होना ही चाहिए। कानून निर्माताओं को ध्यान में रखना चाहिए कि दहेज, यौन-शोषण के साथ-साथ बलात्कार वह मुख्य कारण है जो एक मां को कन्या भू्रण हत्या के लिए मजबूर करता है। कौन मां अपनी बच्ची को ऎसे दानवों एवं सरकारी दबावों (अस्मत देने के) के भरोसे बड़ा करना चाहेगी?
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सत्ता के चारों ओर बस धन, माफिया,भोग,हत्या ही बचे हैं। जीवन शरीर पर आकर ठहर गया है। दर्शन पुस्तकों में, कर्म और कर्म-फल गीता में तथा पुनर्जन्म का भय टी.वी.-सत्ता ने भुला दिया है।
:जब यह सुना तो रोक नहीं पाया मैं खुद को यह सब लिख डाला आज देश को गुलाब कोठारी जी की बातों पे अमल करने की जरूरत है कब चेत पाओगे जागो अभी भी वक्त है आने वाले समय में यह और खतरनाक न हो इसलिए अब हमारी सरकारों को शख़्त क़दम उठाने ही पड़ेंगे !😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢
मन तो गाली देने का है पर संस्कार इजाज़त नहीं देते ! पागल कुत्तों को गोली मार कर मौत के घाट उतार देना ही बेहतर है ।