मिसरा मिसरा शेर बनाया ग़ज़ल दर्द से बनाई आख़िरी मिसरा गिरा क़तरा पूरी ग़ज़ल रुलाई गुजरा जब फिर इक इक शेर की गलियों से वो लिपट के रोया रोके न रुके फिर उसकी रुलाई . कह के अपनी वो हल्का हो गया . धीर हल्का हो गया