ऐसे तो लोग अक्सर बिना सोचे समझे कई ऐसे कॉमेंट्स कर जाते हैं,जिनका।किसी पर क्या प्रभाव पड़ेगा वो समझभी नहीं सकते।
हां कोई वो जिसकी आप दिल से इज़्ज़त करते हों वो कोई ऐसा कॉमेंट करे तो तीर की तरह लगता है, वो कहते हैं अपनो के मारे फूल से ज्यादा चोट लगती है, वैसे मुझे कोई चोट वोट नही लगी, मैं कुछ स्पष्ट करना चाहता हूं।
ये कॉमेंट जब मैंने सुना तो अपनी हसी रोक ही नही पाया,
कल Deepak Kanoujia ji se मिलना हुआ, तो बातों बातों में इसका जिक्र। भी आया।
दरअसल मेरी पहली किताब है खामोश इमारत, जिसके कॉपीराइट मेरे पास हैं
प्रकाशक ने उस समय 200 प्रतियां किताब की de kar palla झाड़ लिया,
मेरी पहली किताब थी उत्साह था कुछ सोचा भी नहीं
दूसरी किताब संजीवनी जब लिख रहा था तब तक voluntary Blood Donors Association स्थपित हो चुकी थी, एसोसिएशन के एक सलाहकार ने मुझे सुझाव दिया कि किताब को Association से पब्लिश कराते हैं, क्योंकि हमारी एसोसिएशन के constitution में पब्लिकेशन का प्रावधान है, क्योंकि मैं पहले ही ये निश्चित कर चुका था की अपनी किताब से मुझे कोई आर्थिक लाभ नहीं लेना है जो भी राशि जमा होगी उसे हम कोई एसोसिएशन के प्रोजेक्ट में siphon karenge,