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ना ही मेरे पास लफ्ज़ थे और ना ही मुझमें हिम्मत बस

ना ही मेरे पास लफ्ज़ थे और ना ही मुझमें हिम्मत
बस अपने जज्बातों को खामोशी से 
तुझ तक पहुंचाता रहता।
और तुम बेखबर मुझे सिर्फ देखती रही ।
मैं बेबस था खुद से
ठोकरें खाना और जलील होना आम था ।
फिर कैसे हिम्मत करता तुझ्से बातें करने की,
न जाने कई टुकड़ों में बिखर चुके है
तुझ्से उम्मीद थी की संभाल लेते उठाकर
पर
ये भी गलतफहमी ही निकला ।

©संतोष दत्ता
  #कशिश