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पल्लव की डायरी ,वजूद रखने के लिये उम्मीदे जिंदा रह

पल्लव की डायरी
,वजूद रखने के लिये
उम्मीदे जिंदा रहनी चाहिये
माना माहौल घुटन भरा है
संघर्षो की पटकथा लिखनी चाहिये
चुभे कुछ काँटे,थपेड़े मौसमो के हो
अनिश्चितता से लड़कर
फूल खिलना चाहिये
घटाये और बादल पलभर के लिए है
जब छटेगे वो,तस्वीरे जिंदा रहनी चाहिये
लड़कर ही सही
कमल जिंदगी का हर हाल में खिलना चाहिये
                                                          प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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