सांवरी ......... आंखें उसकी तिरछी कटारी, अरुणिम उभरे गाल। सगरे बदन पर सितारे लपेटे, ठुमकत हिरनी चाल। रुनझुन छनकावत पैजनियां, लिए हाथ रुमाल। अधरों की लाली के आगे, फीकी लागे गुलाब। जूड़े से लटके गजरे उसके, घायल कर दे गमक के। बीबी मेरी बड़ी रंगीली, चले जी देखो संवर के। उसके मतवालेपन के आगे, मैं सारा जग हारूं। जो कुछ है मेरे बस में, सब कुछ उस पर वारूं। चारु चंद्र की चतुर कामिनी, जीवन रंगीन बना दूं। उसके कोमल कदमों नीचे, फूलों की सेज बिछा दूं। चमके ऐसे रूप की रानी, आई चांदनी उतर के। बीबी मेरी बड़ी रंगीली, चले जी देखो संवर के। कदंब की टहनी पर बैठी, कोयल कुहूंके गाये। अपनी ही मीठी बोली में, मन के गीत सुनाये। सांवरिया संग लागी नेह, अपने हुए पराये। बचपन के जो सगे संगी, अब न उसको भाये। चढ़ी अटारी बाट निहारे, रानी राजमहल के। बीबी मेरी बड़ी रंगीली, चले जी देखो संवर के। ©Tarakeshwar Dubey सांवरी #Books