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नकाब पोशिंदों की दुनिया है ये, यहाँ नहीं सुनता फ़र

नकाब पोशिंदों की दुनिया है ये, 
यहाँ नहीं सुनता फ़रियाद कोई। 
यहाँ हँसते है लोग उनपर, 
जब होता है बरबाद कोई।
देकर दोस्ती में झुठीं कसमें वादे,
अपनोंको ही लुट लेता है कोई।
सुना है मरने के बाद "अच्छा था" केहते है सब,
न जाने कब जिंदा इंसान कि एहमीयत जानेगा कब
यंहा दिखेगा है कोई। अपनों को जाननेवाला है कोई?
नकाब पोशिंदों की दुनिया है ये, 
यहाँ नहीं सुनता फ़रियाद कोई। 
यहाँ हँसते है लोग उनपर, 
जब होता है बरबाद कोई।
देकर दोस्ती में झुठीं कसमें वादे,
अपनोंको ही लुट लेता है कोई।
सुना है मरने के बाद "अच्छा था" केहते है सब,
न जाने कब जिंदा इंसान कि एहमीयत जानेगा कब
यंहा दिखेगा है कोई। अपनों को जाननेवाला है कोई?

अपनों को जाननेवाला है कोई?