कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन (हादसे) शाम ढलने को थी लेकिन उसका मन नहीं किया घर लौटने का। वो समुद्र की लहरों में अपने मन की हलचल को दबाने की नाकाम कोशिश कर रही थी। अपने मन के गुस्से को वो किस पर जाहिर करती। कोई भी अपने जीवन के दर्द के अलावा और कुछ देख ही नहीं पा रहा था।मधुरिमा की शादी में टिया के साथ जो कुछ भी हुआ था, उसको भूल जाना मुमकिन नहीं था शायद, या था तब भी उसे थोड़ा समय तो लगना ही था। प्रविष्टि-४ शाम ढलने को थी लेकिन उसका मन नहीं किया घर लौटने का। वो समुद्र की लहरों में अपने मन की हलचल को दबाने की नाकाम कोशिश कर रही थी। अपने मन के गुस्से को वो किस पर जाहिर करती। कोई भी अपने जीवन के दर्द के अलावा और कुछ देख ही नहीं पा रहा था।मधुरिमा की शादी में टिया के साथ जो कुछ भी हुआ था, उसको भूल जाना मुमकिन नहीं था शायद, या था तब भी उसे थोड़ा समय तो लगना ही था। दो महीने से पहले की बात थी, जब वो मधुरिमा की शादी मे अपनी बहनों के साथ भाग दौड़ कर रही थी। शादी में फेरों के वक़्त जब वो अपने मामा जी को बुलाने गई थी तो वहाँ उसके मामाजी अपने दोस्तों के साथ बैठकर शराब पी रहे थे। टिया को उन्हें आवाज देते हुए भी डर लग रहा था फिर भी उसने हिम्मत करके अपने मामाजी को नीचे आने के लिए कहा। उसकी आवाज सुनते ही मामाजी के दोस्तों की वासना भरी निगाहें उस पर पड़ी। वो उसे पकड़ने की कोशिशें करने लगे। वो नीचे लौटने के लिए वहाँ से भागने वाली थी कि एक आदमी ने उसे पीछे से पकड़ लिया।