काठ से ठाठ माना कि हम काठ हैं, पर काठ ही से ठाठ हैं। ठाठ से रहते हैं कुछ ही, दीनता में ठाठ है। मत घिसो यूं काठ को, कि जल उठे चिंगारियां। काठ के जलते ही आएं, ठाठ की भी बारियां। वक्त के रहते ही 'अंकुर', जो संभल न पाओगे। काठ के संग ठाठ वालो, खाक में मिल जाओगे।। ©निरंजन कुमार तिलक काठ से ही ठाठ है #SunSet