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काठ से ठाठ माना कि हम काठ हैं, पर काठ ही से ठाठ है

काठ से ठाठ
माना कि हम काठ हैं,
पर काठ ही से ठाठ हैं।
ठाठ से रहते हैं कुछ ही,
दीनता में ठाठ है।
मत घिसो यूं काठ को,
कि जल उठे चिंगारियां।
काठ के जलते ही आएं,
ठाठ की भी बारियां।
वक्त के रहते ही 'अंकुर',
जो संभल न पाओगे।
काठ के संग ठाठ वालो,
 खाक में मिल जाओगे।।

©निरंजन कुमार तिलक काठ से ही ठाठ है

#SunSet
काठ से ठाठ
माना कि हम काठ हैं,
पर काठ ही से ठाठ हैं।
ठाठ से रहते हैं कुछ ही,
दीनता में ठाठ है।
मत घिसो यूं काठ को,
कि जल उठे चिंगारियां।
काठ के जलते ही आएं,
ठाठ की भी बारियां।
वक्त के रहते ही 'अंकुर',
जो संभल न पाओगे।
काठ के संग ठाठ वालो,
 खाक में मिल जाओगे।।

©निरंजन कुमार तिलक काठ से ही ठाठ है

#SunSet

काठ से ही ठाठ है #SunSet #कविता