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शहर ए उल्फत में जिसे देखा था हू-ब-हू वो तेरे जैसा

शहर ए उल्फत में जिसे देखा था 
हू-ब-हू वो तेरे जैसा था

तेरी यादे थी मेरी हमराही 
वरना मैं और घना सहरा था

भीगी भीगी थी निगाहें उसकी 
हिज्र में मेरे वो भी रोया था

आज भी दिल में बसा रखा है 
दर्दे उल्फत जो कभी पाया था

इश्क की तपती हुई राहो मे 
टूटी दीवार का मैं साया था

क्या मुहब्बत में महकते दिन थे 
टूटकर उसने मुझे चाहा था

महकी महकी है, फिजाय रमजानी
कौन ख्वाबो में मेरे आया था

14/10/15-

©MSA RAMZANI Ghazal
शहर ए उल्फत में जिसे देखा था 
हू-ब-हू वो तेरे जैसा था

तेरी यादे थी मेरी हमराही 
वरना मैं और घना सहरा था

भीगी भीगी थी निगाहें उसकी 
हिज्र में मेरे वो भी रोया था

आज भी दिल में बसा रखा है 
दर्दे उल्फत जो कभी पाया था

इश्क की तपती हुई राहो मे 
टूटी दीवार का मैं साया था

क्या मुहब्बत में महकते दिन थे 
टूटकर उसने मुझे चाहा था

महकी महकी है, फिजाय रमजानी
कौन ख्वाबो में मेरे आया था

14/10/15-

©MSA RAMZANI Ghazal
mohdsamshadali7461

MSA RAMZANI

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