"यह घर नहीं बस बंगला है" "चारदीवारी तो है मगर यहां हम नहीं, यह मकान ही है बहुत बड़ा, पर घर नहीं। घर बनता है परिवार से, प्रेम की बौछार से। यह इमारत है किसी धनवान की, जिंदा मुर्दों के शमशान की। यहां लोग तो हैं मगर, हैं तन्हाई से घिरे हुए, आधुनिकता के चलते खुद ही से हैं भिड़े हुए। यहां खुशियां भी कहां पलती हैं, पहली चोखट से ही डरती हैं। यह घर नहीं है, बस बंगला है, तन्हाइयों से भरा अंगना है। दूर-दूर तक इनका नाता अपनों से नहीं हो पाता है, यह मंजिल ही तो है, सच्चे रिश्ते भी यहां से हर कोई, बिखराकर चला जाता है।। खिड़की यहां की हमसे कोई दास्तां सुनाना चाहती है, गलियारे की चार दीवारें स्वतंत्रता खुद से चाहती हैं। छत तो यहां की बहुत भली मंजिल-मंजिल जोड़े चली जाती है, पर सामने के दरवाज़े की तो कैदी रखने की, नियत ही बुरी बताती है। यह घर नहीं है पत्थर हैं, पत्थर-पत्थर भी इससे जुड़कर, जाने क्या-क्या सहते हैं, तन्हाई के आलम में दबकर, जिंदा होकर फिर मरते हैं। हर कोई चाहता इसको पाना, इसकी खातिर रिश्ते ठुकराना। यह घर नहीं है, बस बंगला है, गौर से देखो इसके अंदर तन्हाईयों से भरा अंगना है।।" @meri_कहानी, meri_ज़ुबानी ©Ayushi Kesar "यह घर नहीं है, बस बंगला है" @आयुषी_केसर