सतयुग सत त्रेता यगी द्वापर पूजाचार।। तीनो जुग तीनों दिड़े कल केवल नाम आधार।। 2. भगत जुगत मत सर करी भृम बंदन काट बिकार।। 3. उनमन मन मन ही मिले छुटकत बजर कपाट।। अर्थ:- सतयुग में सत्य त्रेता में यज्ञ व द्वापर में पूजा अर्चना का समय था।। तीनो युग के यह क्रम दृड़ थे और कलयुग में केवल निराकार प्रकाश को नेत्रों से निहारना यानी नाम धयाना ही मन का आधार है।। 2. भगती क्या है? वह है जुगती यानी एकदृष्ट करके मन की मत चोड़ कर गुर यानी निराकार की मत लेना जिससे सारी जगत की मत मन जीत लेता है और खुद को शरीर समझने का भान छोड़ खुद को प्रकाश स्वरूप मन समझता है और उस मन के बंधन ओर विकार काटे जाते हैं।। 3. उनमन यानी उस निराकार में चौथे पद में मन समा जाता है और उसकी दृष्टि के आगे पड़ा भृम का पर्दा यानी वज्र कपाट खुल जाता है निराकार यानी गुर के ज्ञान द्वारा।। ©Biikrmjet Sing #युग