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प्रेम हमारी चाहत की वो पहली मुलाक़ात याद है, तुम्ह

प्रेम

हमारी चाहत की वो पहली मुलाक़ात याद है, तुम्हें!
आषाढ माह की वो शरारती फुहार याद है, तुम्हें!
उन बूँदों की छुअन से थरथराते होंठों से कहे मेरे अल्फ़ाज़ों की गूँज याद है, तुम्हें! 
उस सूज्जमूँदे पहर की याद है तुम्हें, जब हमारी चाहत लफ़्ज़ों से होते हुई सीधे नज़रों से बयां हुई थी 

मोहब्बत के उस स्याहा सुर्ख़ लाल रंग की पहचान है, तुम्हें!
जिसका रंग चढ़ने के बाद उतरता नहीं, उतरने के बाद खिलता नहीं
जिसकी संदली-सी महक प्रेमपंछियों की परवानियों को,उनके शोख़ीपन को महकाती रहती है,
जिसका सुरूर मधुशाला-सा छलकता रहता है
वो प्रेम की शहद-सी मीठी-सी सौंधी-सी मिठास याद है, तुम्हें! 

वो महीन मलमल याद है, तुम्हें!
जिसपे बैठ हम घंटों एक-दूसरे के आलिंगनपाश में खोए रहे
वो कोमल-सा स्पर्श याद है तुम्हें, जिसकी कोरी छुअन विद्युत धारा-सी थी
वो प्रेम की अठखेलियाँ याद हैं तुम्हें, जो हमारी नज़दीकियों का एहसास थीं
प्रेम की वो आँखमिचौली याद है ना, तुम्हें!
वो मेरे इठलाते मृगनयनी-से चंचल नयनों की क्रीडाएँ तो याद हैं ना, तुम्ह

©Kusum Tripathi प्रेम पर्व
प्रेम

हमारी चाहत की वो पहली मुलाक़ात याद है, तुम्हें!
आषाढ माह की वो शरारती फुहार याद है, तुम्हें!
उन बूँदों की छुअन से थरथराते होंठों से कहे मेरे अल्फ़ाज़ों की गूँज याद है, तुम्हें! 
उस सूज्जमूँदे पहर की याद है तुम्हें, जब हमारी चाहत लफ़्ज़ों से होते हुई सीधे नज़रों से बयां हुई थी 

मोहब्बत के उस स्याहा सुर्ख़ लाल रंग की पहचान है, तुम्हें!
जिसका रंग चढ़ने के बाद उतरता नहीं, उतरने के बाद खिलता नहीं
जिसकी संदली-सी महक प्रेमपंछियों की परवानियों को,उनके शोख़ीपन को महकाती रहती है,
जिसका सुरूर मधुशाला-सा छलकता रहता है
वो प्रेम की शहद-सी मीठी-सी सौंधी-सी मिठास याद है, तुम्हें! 

वो महीन मलमल याद है, तुम्हें!
जिसपे बैठ हम घंटों एक-दूसरे के आलिंगनपाश में खोए रहे
वो कोमल-सा स्पर्श याद है तुम्हें, जिसकी कोरी छुअन विद्युत धारा-सी थी
वो प्रेम की अठखेलियाँ याद हैं तुम्हें, जो हमारी नज़दीकियों का एहसास थीं
प्रेम की वो आँखमिचौली याद है ना, तुम्हें!
वो मेरे इठलाते मृगनयनी-से चंचल नयनों की क्रीडाएँ तो याद हैं ना, तुम्ह

©Kusum Tripathi प्रेम पर्व

प्रेम पर्व #कविता