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इत्तेफ़ाक थी मोहब्बत इत्तेफ़ाक से मिले दोनों नज़रे

इत्तेफ़ाक थी मोहब्बत
इत्तेफ़ाक से मिले दोनों
नज़रें उसको ही ढूंढती थी
नज़र चुरा भी रहे थे
दिल में था जो प्यार 
बड़ी मुश्किल से छिपा रहे थे
एक दूसरे के लिए कसमे वादे खा रहे थे
दिल की तसल्ली के लिए 
मिलने के बहाने ढूंढ रहे थे
शायद मंजूर न था ये ख़ुदा को
जो दूर होने लगे
भूल कर एक दूजे को मशरूफ होने लगे

©Sudipta Mazumdar
  #yah mahaj ittefaq nahin Aaj ham yahan hai...

#yah mahaj ittefaq nahin Aaj ham yahan hai... #Poetry

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