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सखी कितना ही करे वो अनदेखा, उन्हें दिल में रखें तो

सखी
कितना ही करे वो अनदेखा, उन्हें दिल में रखें तो क्या हर्ज है ? 
चोरी-चोरी चुपके-चुपके, देखूं उन्हें जी भर के तो क्या हर्ज है ? 

 रहेगा अफसोस ताउम्र बेशक की चाहत अधूरी रह जानी है,
 दूँगा तसल्ली खुद को की चाहा टूट कर तुम्हें तो क्या हर्ज है?

पता तो है कि वो कभी नहीं चाहेगी हमे किसी भी सूरत में,
फिर भी उन्हें ख्वाबों में जिंदगी भर सजा लूँ तो क्या हर्ज है?

मेरा दिल जानता है कि यह ख़ालिस एकतरफा प्यार है 'नीरज फिर भी इस प्यार को ताउम्र शिद्दत से निभाहुँ तो क्या हर्ज है?

©Neeraj-ki-sakhi
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