कविता शीर्षक: बुलंद इरादे, निश्चीत कामयाबी तुम्हें तकदीर बदलनी है, तो खुद से बदल डालो।। हो गई है मुहब्बत इन किताबों से, दिन को रात में खुद से बदल डालो।। तुम्हें तकदीर बदलनी है, तो खुद से बदल डालो।। जितना हो सके हर शब्द के मायने समझना तुम, जिंदगी सवर जायेगी खुद ब खुद से समझ डालो तुम।। करो मुहब्बत इन किताबों से, मुश्किलें तो आयेगी लेकिन मत घबराना तुम।। तुम्हें तकदीर बदलनी है, तो खुद से बदल डालो तुम।। देर हो रही है वो वक्त भी आएगा, मंजिलें भी मिलेगी और परचम भी लहरायेगा।। मुश्किल वक्त को भूल मत जाना तुम, नया इतिहास लिखने वालो को मजबुर कर डालो तुम।। तुम्हें तकदीर बदलनी है, तो खुद से बदल डालो।। कविता शीर्षक: बुलंद इरादे, निश्चीत कामयाबी तुम्हें तकदीर बदलनी है, तो खुद से बदल डालो।। हो गई है मुहब्बत इन किताबों से, दिन को रात में खुद से बदल डालो।।