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उम्र बढ़ने के साथ-साथ जिम्मेदारियाँ भी बढ़ने लगती है

उम्र बढ़ने के साथ-साथ जिम्मेदारियाँ भी बढ़ने लगती है. जिम्मेदारी उस समय बड़ी क्रूर लगती है जब कोई बच्चा अपनी भूख मिटाने के लिए भीख मांगता है. खिलौने से खेलने की उम्र में रेडलाइट पर खिलौने बेचता है. सही उम्र में जिम्मेदारियों को उठाना सुखद होता है. जब कम उम्र में जिम्मेदारियों को उठाते है तो ये ना जाने कितने सपनों का कत्ल कर देती है. जिंदगी में जिम्मेदारियाँ सिखाती भी है और इंसान को तोड़ भी देती है.
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©Anurag kumar
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