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पढ़िए जरूर...(रूहानी प्यार) ''उसने जिस्म छोड़ा है

पढ़िए जरूर...(रूहानी प्यार)

''उसने जिस्म छोड़ा है साथ नही "
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अक्तूबर 2005 का  गुलाबी मौसम है ,गुनगुनी सी धूप चारो और फैली है . उस धूप में एक करीने सा सजा मकान चमक रहा है . और उसी मकान के एक कमरे में 86 वर्ष कि एक खूबसूरत महिला आँखे बंद किये हुए लेटी है  . डाक्टरों के अनुसार उस महिला के जीवन कि अब चंद घडिया ही बची है .    उस महिला का सर एक सफेद लम्बे बालो वाले पुरुष कि गोद में  है . वो नर्म हाथो से उस महिला के सर को सहला रहा है .

उस पुरुष कि आँखों में महिला के साथ गुजारे गए 47 साल एक-एक दिन के रूप में गुजर रहे है. वो महिला जिस से उसके रिश्ते का कोई नाम नही था . पर  सालों  से वो हर पल साथ रहे है .

उसे  आज भी वो दिसम्बर कि शाम याद है जब  47 पहले इस महिला से मिला था . और फिर दोनों एक दूसरे के हो कर रह गए थे . जबकि उसे पता था कि वो उस महिला का पहला प्रेमी नही है पर वो ये भी जानता था कि वो उसका अंतिम प्रेमी है .

 दुनिया में हर आशिक़ की तमन्ना होती है कि वो अपने इश्क़ का इज़हार करें लेकिन वो दोनों  इस मामले में अनूठे थे कि उन्होंने कभी भी एक दूसरे से नहीं कहा कि वो एक-दूसरे से प्यार करते हैं.

''जब प्यार है तो बोलने की क्या ज़रूरत है? फ़िल्मों में भी आप उठने-बैठने के तरीक़े से बता सकते हैं कि हीरो-हीरोइन एक दूसरे से प्यार करते हैं लेकिन वो फिर भी बार-बार कहते हैं कि वो एक-दूसरे से प्यार करते हैं और ये भी कहते हैं कि वो सच्चा प्यार करते हैं जैसे कि प्यार भी कभी झूठा होता है.''

परंपरा ये है कि आदमी-औरत एक ही कमरे में रहते हैं. लेकिन वो  पहले दिन से ही एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में रहते रहे. एक-दूसरे की ख़ुशबू उन्हें बांधे रहती थी.
 
महिला एक लेखिका थी वो रात के समय लिखती थीं. जब ना कोई आवाज़ होती हो ना टेलीफ़ोन की घंटी बजती हो और ना कोई आता-जाता हो. उनको लिखते समय चाय चाहिए होती थी. वो ख़ुद तो उठकर चाय बनाने जा नहीं सकती थीं. इसलिए उसने  रात के एक बजे उठना शुरू कर दिया. वो  चाय बनाता और चुपचाप उनके आगे रख आता. वो लिखने में इतनी खोई हुई होती थीं कि उसकी  तरफ़ देखती भी नहीं थीं. ये सिलसिला चालीस- सालों तक चला रहा .

 एक रोज उसकी नौकरी लग गयी बंबई में . दोनों को एक दूसरें से दूर जाना अच्छा नही लग रहा था , पर सवाल भविष्य का था और महिला नही चाहती थी वो पुरुष के पैरो का बंधन बने ,एक दूसरें-कि पूरी आजदी ही उनका बंधन थी .
वो उधर गया इधर महिला को बुखार ने घेर लिया , और पुरुष बंबई पहुंचते ही उदास हो गया . और उसने पहले ही दिन तय कर लिया कि वो वापस जा रहा है , पुरुष  ने फोन किया ,उन्होंने पूछा सब कुछ ठीक है ना. उसने   कहा कि सब कुछ ठीक है लेकिन मैं इस शहर में नहीं रह सकता. उसने  तब भी उन्हें नहीं बताया कि वो  उनके लिए वापस आ रहा हूँ. उसने उन्हें अपनी ट्रेन और कोच नंबर बता दिया था.और  जब वो  दिल्ली पहुंचा वो उनके  कोच के बाहर खड़ी थीं और उसका  बुख़ार उतर गया था .

उसे याद आ रहा था अक्सर वो स्कूटर पर पीछे बैठ कर एक नाम उसकी पीठ पर अनजाने में  लिखती रहती थी , वो नाम उसका नही ये बात उसको भी पता थी . वो नाम उसका था जिसे वो बेपनाह मोहब्बत करती थी .

एक दिन उस खुबसूरत महिला कि बाथरूम में गिर जाने से उनके कूल्हे की हड्डी टूट गई. उसके बाद मिले दर्द ने उन्हें कभी नहीं छोड़ा.
   उसने खुद को अपनी मोहब्बत कि  सेवा करने में पूरी तरह से झोंक दिया. उन दिनों को महिला  के लिए पुरुष  ने ख़ूबसूरत बना दिया. उन्होंने उनकी बीमारी को उनके साथ-साथ सहा. बहुत ही प्यार से वो उनको खिलाते, उनको पिलाते, उनको नहलाते, उनको कपड़े पहनाते. वो क़रीब-क़रीब शाकाहारी हो गईं थीं बाद में, वो उनसे बातें करते, उन पर कविताएं लिखते, उनकी पसंद के फूल लेकर आते. जबकि वो इस काबिल भी नहीं थीं कि वो हूँ-हाँ करके उसका जवाब ही दे दें.''

पुरुष कि गोद में सर रखे-रखे महिला अपनी अनंत यात्रा पर निकल गयी है . और सालो बाद भी  पुरुष कि लिखी चंद लाइने फिंजा में गूंज रही है

“ ''उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं. 
वो अब भी मिलती है
 कभी तारों की छांव में , 
कभी बादलोंकी छांव में 
कभी किरणों की रोशनी में 
कभी ख़्यालों के उजाले में 
हम उसी तरह मिलकर चलते हैं 
चुपचाप 
हमें चलते हुए देखकर फूल हमें बुला लेते हैं 
हम फूलों के घेरे में बैठकर 
एक-दूसरे को अपना अपना कलाम सुनाते हैं
 उसने जिस्म छोड़ है साथ नहीं...''

 अरे हाँ इनका नाम.....
 ,,, “ ,**इमरोज और अमृता प्रीतम ***“ ही है
(कॉपी) me and my sentiments...
पढ़िए जरूर...(रूहानी प्यार)

''उसने जिस्म छोड़ा है साथ नही "
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अक्तूबर 2005 का  गुलाबी मौसम है ,गुनगुनी सी धूप चारो और फैली है . उस धूप में एक करीने सा सजा मकान चमक रहा है . और उसी मकान के एक कमरे में 86 वर्ष कि एक खूबसूरत महिला आँखे बंद किये हुए लेटी है  . डाक्टरों के अनुसार उस महिला के जीवन कि अब चंद घडिया ही बची है .    उस महिला का सर एक सफेद लम्बे बालो वाले पुरुष कि गोद में  है . वो नर्म हाथो से उस महिला के सर को सहला रहा है .

उस पुरुष कि आँखों में महिला के साथ गुजारे गए 47 साल एक-एक दिन के रूप में गुजर रहे है. वो महिला जिस से उसके रिश्ते का कोई नाम नही था . पर  सालों  से वो हर पल साथ रहे है .

उसे  आज भी वो दिसम्बर कि शाम याद है जब  47 पहले इस महिला से मिला था . और फिर दोनों एक दूसरे के हो कर रह गए थे . जबकि उसे पता था कि वो उस महिला का पहला प्रेमी नही है पर वो ये भी जानता था कि वो उसका अंतिम प्रेमी है .

 दुनिया में हर आशिक़ की तमन्ना होती है कि वो अपने इश्क़ का इज़हार करें लेकिन वो दोनों  इस मामले में अनूठे थे कि उन्होंने कभी भी एक दूसरे से नहीं कहा कि वो एक-दूसरे से प्यार करते हैं.

''जब प्यार है तो बोलने की क्या ज़रूरत है? फ़िल्मों में भी आप उठने-बैठने के तरीक़े से बता सकते हैं कि हीरो-हीरोइन एक दूसरे से प्यार करते हैं लेकिन वो फिर भी बार-बार कहते हैं कि वो एक-दूसरे से प्यार करते हैं और ये भी कहते हैं कि वो सच्चा प्यार करते हैं जैसे कि प्यार भी कभी झूठा होता है.''

परंपरा ये है कि आदमी-औरत एक ही कमरे में रहते हैं. लेकिन वो  पहले दिन से ही एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में रहते रहे. एक-दूसरे की ख़ुशबू उन्हें बांधे रहती थी.
 
महिला एक लेखिका थी वो रात के समय लिखती थीं. जब ना कोई आवाज़ होती हो ना टेलीफ़ोन की घंटी बजती हो और ना कोई आता-जाता हो. उनको लिखते समय चाय चाहिए होती थी. वो ख़ुद तो उठकर चाय बनाने जा नहीं सकती थीं. इसलिए उसने  रात के एक बजे उठना शुरू कर दिया. वो  चाय बनाता और चुपचाप उनके आगे रख आता. वो लिखने में इतनी खोई हुई होती थीं कि उसकी  तरफ़ देखती भी नहीं थीं. ये सिलसिला चालीस- सालों तक चला रहा .

 एक रोज उसकी नौकरी लग गयी बंबई में . दोनों को एक दूसरें से दूर जाना अच्छा नही लग रहा था , पर सवाल भविष्य का था और महिला नही चाहती थी वो पुरुष के पैरो का बंधन बने ,एक दूसरें-कि पूरी आजदी ही उनका बंधन थी .
वो उधर गया इधर महिला को बुखार ने घेर लिया , और पुरुष बंबई पहुंचते ही उदास हो गया . और उसने पहले ही दिन तय कर लिया कि वो वापस जा रहा है , पुरुष  ने फोन किया ,उन्होंने पूछा सब कुछ ठीक है ना. उसने   कहा कि सब कुछ ठीक है लेकिन मैं इस शहर में नहीं रह सकता. उसने  तब भी उन्हें नहीं बताया कि वो  उनके लिए वापस आ रहा हूँ. उसने उन्हें अपनी ट्रेन और कोच नंबर बता दिया था.और  जब वो  दिल्ली पहुंचा वो उनके  कोच के बाहर खड़ी थीं और उसका  बुख़ार उतर गया था .

उसे याद आ रहा था अक्सर वो स्कूटर पर पीछे बैठ कर एक नाम उसकी पीठ पर अनजाने में  लिखती रहती थी , वो नाम उसका नही ये बात उसको भी पता थी . वो नाम उसका था जिसे वो बेपनाह मोहब्बत करती थी .

एक दिन उस खुबसूरत महिला कि बाथरूम में गिर जाने से उनके कूल्हे की हड्डी टूट गई. उसके बाद मिले दर्द ने उन्हें कभी नहीं छोड़ा.
   उसने खुद को अपनी मोहब्बत कि  सेवा करने में पूरी तरह से झोंक दिया. उन दिनों को महिला  के लिए पुरुष  ने ख़ूबसूरत बना दिया. उन्होंने उनकी बीमारी को उनके साथ-साथ सहा. बहुत ही प्यार से वो उनको खिलाते, उनको पिलाते, उनको नहलाते, उनको कपड़े पहनाते. वो क़रीब-क़रीब शाकाहारी हो गईं थीं बाद में, वो उनसे बातें करते, उन पर कविताएं लिखते, उनकी पसंद के फूल लेकर आते. जबकि वो इस काबिल भी नहीं थीं कि वो हूँ-हाँ करके उसका जवाब ही दे दें.''

पुरुष कि गोद में सर रखे-रखे महिला अपनी अनंत यात्रा पर निकल गयी है . और सालो बाद भी  पुरुष कि लिखी चंद लाइने फिंजा में गूंज रही है

“ ''उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं. 
वो अब भी मिलती है
 कभी तारों की छांव में , 
कभी बादलोंकी छांव में 
कभी किरणों की रोशनी में 
कभी ख़्यालों के उजाले में 
हम उसी तरह मिलकर चलते हैं 
चुपचाप 
हमें चलते हुए देखकर फूल हमें बुला लेते हैं 
हम फूलों के घेरे में बैठकर 
एक-दूसरे को अपना अपना कलाम सुनाते हैं
 उसने जिस्म छोड़ है साथ नहीं...''

 अरे हाँ इनका नाम.....
 ,,, “ ,**इमरोज और अमृता प्रीतम ***“ ही है
(कॉपी) me and my sentiments...
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