समस्याओं के घाट पर हम समस्याओं के घाट पर हम, अलसुबह बैठ जाते हैं, बुला- बुला कर उन सबके दर्द रोज सुनते जाते हैं। सुन कर दर्द उन सबका फिर अश्कों के खजाने लुटाते हैं, जो है पहले से उनके पास, उन्हें वही दिए चले जाते हैं। जब अश्रु मिलकर "सूने" उन घाटों को भर जाते हैं… ये कैसा समाधान है सोचती हूं मैं क्यूँ आंसू को हम आंसू और खुशी को खुशी देने को यूँ आतुर हो जाते हैं!? दर्द को राहत और ग़म को खुशी क्यूं दे नहीं पाते हैं…? जिसके पास जो है उसकी झोली बस उसी से भरते जाते हैं। चलो आज से आंसू को मुस्कान, समस्या को समाधान दे जाते हैं, समस्याओं के इस घाट पर खुद को ही, एक नया आयाम दे जाते हैं। 21, may, 2021 ©Divya Joshi समस्याओं के घाट पर हम, अलसुबह बैठ जाते हैं, बुला- बुला कर उन सबके दर्द रोज सुनते जाते हैं। सुन कर दर्द उन सबका फिर अश्कों के खजाने लुटाते हैं, जो है पहले से उनके पास, उन्हें वही दिए चले जाते हैं। जब अश्रु मिलकर "सूने" उन घाटों को भर जाते हैं… ये कैसा समाधान है सोचती हूं मैं क्यूँ आंसू को हम आंसू