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है आंसूओ की घोल इसमें,दरद का चितकोर इसमें है मौत क

है आंसूओ की घोल इसमें,दरद का चितकोर इसमें
है मौत का आभाश इसमें,शिशकती माँ का विलाप इसमे,
टुटी हुई साँसो का भी, तरंगो सा आकार इसमें।

है आँधियों की आश इसमें, बुझता हुआ प्रकाश इसमें
है लाचारी और भुखमरी की, आशंका का बाढ इसमें,
जलती हुई लाशों का भी, धुँआ का अंबार इसमें।

है पुछती ये "नदिया", पेर-पौधे "कलियां"
                      :कौन जिम्मेदार है??
कैसे बताऊ मैं इंहे, हुँ मैं भी भागीदार इसमें।

सोचा न था कभी जमाने में, होगा कभी ऐसा
अपने ही दुश्मनों की तरह पेश आएगें।
जाएगें घर से दुर कहीं "युं ही"
और बाजार से यूं मौत का समान लायेंगें

घुम रही है मौतें बाहर, फीर क्यो तुझे बाहर जाना है?
क्यो तुझे अपने ही कंधो पे, अपनो का लाश उठाना है?
 बार-बार क्यो सुनकर भी, तुम बहरो की भाँती करते हो,
क्यो नही तुम होकर अलग,  इस तुक्ष वाईरस से लडते हो??


-सावन कु. सिंह poem written me by ....Fight against Corona.
है आंसूओ की घोल इसमें,दरद का चितकोर इसमें
है मौत का आभाश इसमें,शिशकती माँ का विलाप इसमे,
टुटी हुई साँसो का भी, तरंगो सा आकार इसमें।

है आँधियों की आश इसमें, बुझता हुआ प्रकाश इसमें
है लाचारी और भुखमरी की, आशंका का बाढ इसमें,
जलती हुई लाशों का भी, धुँआ का अंबार इसमें।

है पुछती ये "नदिया", पेर-पौधे "कलियां"
                      :कौन जिम्मेदार है??
कैसे बताऊ मैं इंहे, हुँ मैं भी भागीदार इसमें।

सोचा न था कभी जमाने में, होगा कभी ऐसा
अपने ही दुश्मनों की तरह पेश आएगें।
जाएगें घर से दुर कहीं "युं ही"
और बाजार से यूं मौत का समान लायेंगें

घुम रही है मौतें बाहर, फीर क्यो तुझे बाहर जाना है?
क्यो तुझे अपने ही कंधो पे, अपनो का लाश उठाना है?
 बार-बार क्यो सुनकर भी, तुम बहरो की भाँती करते हो,
क्यो नही तुम होकर अलग,  इस तुक्ष वाईरस से लडते हो??


-सावन कु. सिंह poem written me by ....Fight against Corona.
bossboss5854

sawan

New Creator

poem written me by ....Fight against Corona.