बीती बातों की धूल, रह रह कर चुभेगी अक्सर, अल्फाज़ ज़रा सोच समझकर बयां करना तुम।। अनकही बातों का ग़ुबार, 'आज' बर्बाद करेगा, छूटे वो जज़्बात ज़रा संभलकर बयां करना तुम।। वो ख़ूब समझता है, ये कहीं दिल का भ्रम न हो, अपने ख़्यालात ज़रा टटोलकर बयां करना तुम।। सुनने से ज़्यादा रूठने की जल्दी होती है अक्सर, ग़र हो मनाना, तो ज़रा भूल कर बयां करना तुम।। बीती बातों की धूल, रह रह कर चुभेगी अक्सर, अल्फाज़ ज़रा सोच समझकर बयां करना तुम।। अनकही बातों का ग़ुबार, 'आज' बर्बाद करेगा, छूटे वो जज़्बात ज़रा संभलकर बयां करना तुम।। वो ख़ूब समझता है, ये कहीं दिल का भ्रम न हो, अपने ख़्यालात ज़रा टटोलकर बयां करना तुम।।