ग़ज़ल --- कहीं चराग़ की सूरत कहीं धुवां हूं मैं मुझे पता ही नहीं है कहां-कहां हूं मैं वो जाने क्यूं मिरे दिल के क़रीब रहता है न हम ख़याल हूं उसका न हम ज़ुबां हूं मैं मिरे सुख़न की ये लज़्ज़त है और मक़सद भी वहीं पे प्यार लुटाऊं जहां-जहां हूं मैं मिरे बदन पे सितारे हैं, चांद, सूरज भी मुझे ये लगता है जैसे कि आसमां हूं मैं मेरा वजूद है क़ायम तिरे वजूद के साथ जहां-जहां है तू दुनिया वहां-वहां हूं में ।। -------- #अपनी जिन्दगी में गुम