ज़िंदगी यूँ लगे ख्वाइश हो कोई बुझती लो की फरमाइश हो कोई चली है अदब से बिन जबाब दिए जैसे बाज़ार की नुमाइश हो कोई, हम सोचे में डूबे है क्या कर गुजरी यूँ लगा मानो आजमाइश हो कोई, हकीकत और ख्वाबों के दरमियां लड़ रही है जैसे पैमाइश हों कोई पर्दे में रह मुझ को बेपर्दा है करती जैसे मैं उसकी फरमाइश हो कोई ©khyalon ka Safar ज़िंदगी यूँ लगे ख्वाइश हो कोई बुझती लो की फरमाइश हो कोई चली है अदब से बिन जबाब दिए जैसे बाज़ार की नुमाइश हो कोई, हम सोचे में डूबे है क्या कर गुजरी यूँ लगा मानो आजमाइश हो कोई,