अपनी करनी पर रो रहा हूँ अपने अहम को ढो रहा हूँ। जैसा फलक से भेजा गया था मुझे नहीं वैसा अब मैं वो रहा हूँ। जब खुद ही काटनी है कर्मों की फसल तो नाहक क्यों सकाम कर्मों के बीज बो रहा हूँ। अपने हालात के लिए मैं खुद ही हूँ जिम्मेदार खुद ही भवसागर में खुद को डुबो रहा हूँ। अपनी करनी पर रो रहा हूँ अपने अहम को ढो रहा हूँ। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ अहम