पूर्णिमा का चाँद अद्भुत भौगोलिक मासिक दृश्य छटा बिखेरती,निहारते लोग कुछ आंनद वश,अनेक आदर पूर्वक मैं तसमई हेतु,अनायास जुड़ा परंतु, पुनरावृति ने परम्परा का अंग बना दिया अब व्याकुल रहता हूँ,प्रश्नों के स्वाद से भी प्रथम प्रश्न,क्या प्रतिष्ठित करने की सोच रही होगी? अखिल भारत महो,महो है ये संयोग वश हो पाता तो, कम से कम प्लास्टिक का तो, नामोनिशान नहीं रहता,हालांकि कई प्रयास हुए क्षमा भटकाव के लिए (भटकाव ही है,जो अगर सभी स्तब्ध ही हो जाएं) प्लास्टिक छोड़ प्रश्न पर आते हैं कि क्या प्रतिष्ठित करने की सोच रही होगी? हटिये महाराज,पोंगा पंडितों की सूझ-बूझ! हें? और क्या। तो प्लास्टिक भी उन्हीं से हटवा लो।तुम भी !! देखना एक दिन सभी प्लास्टिक को अछूत मानेंगे।जब ज्ञान बढेगा अभी अज्ञानी हैं।क्षमा अज्ञानी कहने हेतु।जीविका ही जंजाल है और,जिनका नहीं है उन्हें लज्जा...... पूर्णिमा का चाँद अद्भुत भौगोलिक मासिक दृश्य छटा बिखेरती,निहारते लोग कुछ आंनद वश,अनेक आदर पूर्वक मैं तसमई हेतु,अनायास जुड़ा परंतु, पुनरावृति ने परम्परा का अंग बना दिया