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पार्ट-8 उस रात लगभग दस बज चुके थे।तभी मेरा रूममेट

पार्ट-8
उस रात लगभग दस बज चुके थे।तभी मेरा रूममेट भानू आया और बोला यार स्वप्निल चल बे छत पर चल, जनवरी की कड़कडाती सर्दी में छत पर जाना जिंदगी को जोखिम मे डालना पर कंमबख्त ये दोस्त तुम्हे कहीं पर भी ले जाते है, उपर से रूममेट, थोडी देर में, मैं छत पर था और हमारे आसपास बैठे थे हॉस्टल के वो लड़के जो सिर्फ एक ही ज्ञान देते थे " भाई नौकरी तेरी भी लगेगी नौकरी मेरी भी लगेगी 
हाँ थोड़ा बहुत अंतर होगा रुपयो का " तभी उनमे से एक महानुभाव  बोला "अरे यार जिसकी ना लगे हम उसकी लगवा देंगे " कई लड़के जो युद्ध से पहले ही हथियार डाल चुके थे। उस मित्र के करीब हो गए और बोले " हाँ ये बात तो सही कर रहा है। इसके चाचा एक बडी कंपनी में अच्छे पद पर हैं" बस फिर क्या था जनाब खुश, तभी उस महफ़िल के मुख्य कार्यकरता ने अपनी जेब से सिगरेट निकाली,पीछे से आवाज आयी कौन से लाये ही बे,"रेड ब्लैक "मुख्य कार्यकरता ने पीछे से आयी इस प्रश्नवाचक ध्वनी का का उत्तर दिया अगर हॉस्टल की  इस महफ़िल को बाबा साहब देख लेते तो वो जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए आरक्षण से पहले ऐसी संगोष्ठियां करवाते यहाँ सब समान होते थे और छुआछूत को तो ये लोग एक दूसरे के द्वारा उपयोग की गयी सिगरेट के सहारे कश भर कर उड़ा देते थे।गोलाई मे सजी इस महफ़िल का नियम था की पहली सिगरेट के बाद ही दुसरी सिगरेट को जलाया जाता था। पांच महानुभावों
से चुंबन प्राप्त कर ये बेबस सिगरेट मेरे पास आयी थी। चाहती थी वो कि मैं उसको मोक्ष की प्राप्ति अपने होठो से कराऊँ पर में अनुभवहीन प्राणी उस तड़पती आत्मा की संतुष्टि का कारण ना बन सका। 
और भानु के द्वारा उस मोक्ष की प्राप्ति हुई। वैसे अगर  व्यक्ति और सिगरेट की तुलना की जाए तो ज्यादा अंतर कहाँ होता है। दोनो की जीवन यात्रा में दोनो को कई लोगो के हाथो से गुजरना पड़ता है। हर व्यक्ति अपनी सुविधा अनुसार उपयोग करता है जीवन भी सुलगता है आग रूपी परेशानियों से और अंत मे बचती है सिर्फ राख,अरे में भी आध्यात्मिक हो रहा हूँ क्या करे इन महफ़िल में हर व्यक्ति ज्ञान बाँटता है।
.... #जलज _ राठौर पार्ट-8
उस रात लगभग दस बज चुके थे।तभी मेरा रूममेट भानू आया और बोला यार स्वप्निल चल बे छत पर चल, जनवरी की कड़कडाती सर्दी में छत पर जाना जिंदगी को जोखिम मे डालना पर कंमबख्त ये दोस्त तुम्हे कहीं पर भी ले जाते है, उपर से रूममेट, थोडी देर में, मैं छत पर था और हमारे आसपास बैठे थे हॉस्टल के वो लड़के जो सिर्फ एक ही ज्ञान देते थे " भाई नौकरी तेरी भी लगेगी नौकरी मेरी भी लगेगी 
हाँ थोड़ा बहुत अंतर होगा रुपयो का " तभी उनमे से एक महानुभाव  बोला "अरे यार जिसकी ना लगे हम उसकी लगवा देंगे " कई लड़के जो युद्ध से पहले ही हथियार डाल चुके थे। उस मित्र के करीब हो गए और बोले " हाँ ये बात तो सही कर रहा है। इसके चाचा एक बडी कंपनी में अच्छे पद पर हैं" बस फिर क्या था जनाब खुश, तभी उस महफ़िल के मुख्य कार्यकरता ने अपनी जेब से सिगरेट निकाली,पीछे से आवाज आयी कौन से लाये ही बे,"रेड ब्लैक "मुख्य कार्यकरता ने पीछे से आयी इस प्रश्नवाचक ध्वनी का का उत्तर दिया अगर हॉस्टल की  इस महफ़िल को बाबा साहब देख लेते तो वो जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए आरक्षण से पहले ऐसी संगोष्ठियां करवाते यहाँ सब समान होते थे और छुआछूत को तो ये लोग एक दूसरे के द्वारा उपयोग की गयी सिगरेट के सहारे कश भर कर उड़ा देते थे।गोलाई मे सजी इस महफ़िल का नियम था की पहली सिगरेट के बाद ही दुसरी सिगरेट को जलाया जाता था। पांच महानुभावों
से चुंबन प्राप्त कर ये बेबस सिगरेट मेरे पास आयी थी। चाहती थी वो कि मैं उसको मोक्ष की प्राप्ति अपने होठो से कराऊँ पर में अनुभवहीन प्राणी उस तड़पती आत्मा की संतुष्टि का कारण ना बन सका। 
और भानु के द्वारा उस मोक्ष की प्राप्ति हुई। वैसे अगर  व्यक्ति और सिगरेट की तुलना की जाए तो ज्यादा अंतर कहाँ होता है। दोनो की जीवन यात्रा में दोनो को कई लोगो के हाथो से गुजरना पड़ता है। हर व्यक्ति अपनी सुविधा अनुसार उपयोग करता है जीवन भी सुलगता है आग रूपी परेशानियों से और अंत मे बचती है सिर्फ राख,अरे में भी आध्यात्मिक हो रहा हूँ क्या करे इन महफ़िल में हर व्यक्ति ज्ञान बाँटता है।
पार्ट-8
उस रात लगभग दस बज चुके थे।तभी मेरा रूममेट भानू आया और बोला यार स्वप्निल चल बे छत पर चल, जनवरी की कड़कडाती सर्दी में छत पर जाना जिंदगी को जोखिम मे डालना पर कंमबख्त ये दोस्त तुम्हे कहीं पर भी ले जाते है, उपर से रूममेट, थोडी देर में, मैं छत पर था और हमारे आसपास बैठे थे हॉस्टल के वो लड़के जो सिर्फ एक ही ज्ञान देते थे " भाई नौकरी तेरी भी लगेगी नौकरी मेरी भी लगेगी 
हाँ थोड़ा बहुत अंतर होगा रुपयो का " तभी उनमे से एक महानुभाव  बोला "अरे यार जिसकी ना लगे हम उसकी लगवा देंगे " कई लड़के जो युद्ध से पहले ही हथियार डाल चुके थे। उस मित्र के करीब हो गए और बोले " हाँ ये बात तो सही कर रहा है। इसके चाचा एक बडी कंपनी में अच्छे पद पर हैं" बस फिर क्या था जनाब खुश, तभी उस महफ़िल के मुख्य कार्यकरता ने अपनी जेब से सिगरेट निकाली,पीछे से आवाज आयी कौन से लाये ही बे,"रेड ब्लैक "मुख्य कार्यकरता ने पीछे से आयी इस प्रश्नवाचक ध्वनी का का उत्तर दिया अगर हॉस्टल की  इस महफ़िल को बाबा साहब देख लेते तो वो जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए आरक्षण से पहले ऐसी संगोष्ठियां करवाते यहाँ सब समान होते थे और छुआछूत को तो ये लोग एक दूसरे के द्वारा उपयोग की गयी सिगरेट के सहारे कश भर कर उड़ा देते थे।गोलाई मे सजी इस महफ़िल का नियम था की पहली सिगरेट के बाद ही दुसरी सिगरेट को जलाया जाता था। पांच महानुभावों
से चुंबन प्राप्त कर ये बेबस सिगरेट मेरे पास आयी थी। चाहती थी वो कि मैं उसको मोक्ष की प्राप्ति अपने होठो से कराऊँ पर में अनुभवहीन प्राणी उस तड़पती आत्मा की संतुष्टि का कारण ना बन सका। 
और भानु के द्वारा उस मोक्ष की प्राप्ति हुई। वैसे अगर  व्यक्ति और सिगरेट की तुलना की जाए तो ज्यादा अंतर कहाँ होता है। दोनो की जीवन यात्रा में दोनो को कई लोगो के हाथो से गुजरना पड़ता है। हर व्यक्ति अपनी सुविधा अनुसार उपयोग करता है जीवन भी सुलगता है आग रूपी परेशानियों से और अंत मे बचती है सिर्फ राख,अरे में भी आध्यात्मिक हो रहा हूँ क्या करे इन महफ़िल में हर व्यक्ति ज्ञान बाँटता है।
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से चुंबन प्राप्त कर ये बेबस सिगरेट मेरे पास आयी थी। चाहती थी वो कि मैं उसको मोक्ष की प्राप्ति अपने होठो से कराऊँ पर में अनुभवहीन प्राणी उस तड़पती आत्मा की संतुष्टि का कारण ना बन सका। 
और भानु के द्वारा उस मोक्ष की प्राप्ति हुई। वैसे अगर  व्यक्ति और सिगरेट की तुलना की जाए तो ज्यादा अंतर कहाँ होता है। दोनो की जीवन यात्रा में दोनो को कई लोगो के हाथो से गुजरना पड़ता है। हर व्यक्ति अपनी सुविधा अनुसार उपयोग करता है जीवन भी सुलगता है आग रूपी परेशानियों से और अंत मे बचती है सिर्फ राख,अरे में भी आध्यात्मिक हो रहा हूँ क्या करे इन महफ़िल में हर व्यक्ति ज्ञान बाँटता है।