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मावठ ठंडी पुरवाई चली,बढ़ा शीत का जोर। मरु को आन भि

मावठ
ठंडी  पुरवाई चली,बढ़ा शीत का जोर।
मरु को आन भिगो रही,बूंदें चारों और।१।
गेहूँ तो इठला रहा,देख माघ का माह।
मावठ से पूरी हुई, उसके मन की चाह।२।
रिमझिम बरखा जो हुई,वापस लौटी शीत।
मंद पवन भी गा रही,अब मावठ के गीत।३।
जौ-चने हैं सरस रहे,गेंहूँ मस्त बहार।
मावठ खेतों में हुई, रिमझिम गिरी फुहार।४।
#सुनीता बिश्नोलिया







 #NojotoQuote
मावठ
ठंडी  पुरवाई चली,बढ़ा शीत का जोर।
मरु को आन भिगो रही,बूंदें चारों और।१।
गेहूँ तो इठला रहा,देख माघ का माह।
मावठ से पूरी हुई, उसके मन की चाह।२।
रिमझिम बरखा जो हुई,वापस लौटी शीत।
मंद पवन भी गा रही,अब मावठ के गीत।३।
जौ-चने हैं सरस रहे,गेंहूँ मस्त बहार।
मावठ खेतों में हुई, रिमझिम गिरी फुहार।४।
#सुनीता बिश्नोलिया







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