मेरे लबों पे उसका लब़ हो गया, इल्म ना हुआ कैसे कब हो गया। रूह को सुकूं मेरे तब मिल गया, यार मेरा बाहों में, जब सो गया। मेरे जज़्बातों को उसने यूँ छुआ, के इबादत में मेरे वो रब़ हो गया। इनायत़ ही रही होगी रब़ की वो, जो हुआ ना कभी, अब हो गया। पत्थर दिल भी 'इकराश़' हो गया, जिस पल मेरा, वो सब हो गया। मोहब्बत में कोई जब होता है यारों, तभी जर्रा-जर्रा शायर होता है यारों। ये कुछ पन्क्तियाँ दिल से निकली हैं। जो रूह को छू जाये और हमारी मोहब्बत से मोहब्बत हो जाये तो इत्तला ज़रूर करियेगा। आपका सदैव अपना, अंजान 'इकराश़'