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क्यू हम हर किसी को अपना समझ बैठते है जबकि उनके दिल

क्यू हम हर किसी को अपना समझ बैठते है जबकि उनके दिल में कोई और दिमाग में कोई  और होता है उन्हें क्या पता उनकी चालाकियों से हम भी खबरदार थे बस कसूर इतना था कि प्यार में खोए रहने पे इख्तियार थे ।
मालूम थे हमें उस हज़ार चहरे फिर भी एक को पाने के लिए बेकरार थे ।
देखने में नदाना थी पर दिमाग से बड़ी जवान थी लफ़्ज़ों का इस्तेमाल बड़ी बेखूबी से करती  और हम समझ के भी नहीं समझ पाते । लफ़्ज़ों का जाल
क्यू हम हर किसी को अपना समझ बैठते है जबकि उनके दिल में कोई और दिमाग में कोई  और होता है उन्हें क्या पता उनकी चालाकियों से हम भी खबरदार थे बस कसूर इतना था कि प्यार में खोए रहने पे इख्तियार थे ।
मालूम थे हमें उस हज़ार चहरे फिर भी एक को पाने के लिए बेकरार थे ।
देखने में नदाना थी पर दिमाग से बड़ी जवान थी लफ़्ज़ों का इस्तेमाल बड़ी बेखूबी से करती  और हम समझ के भी नहीं समझ पाते । लफ़्ज़ों का जाल