तमाशबीनों की तरह देखते हुए इस दुनिया को थोड़ा पागल हो सोंचकर महसूस करना , वो कई चेहरे जो मिलते हैं अकेले जिन्दा केवल अपने साथ गुमनाम एकांत कमरों में , अंधेरे के बीच टेबल लैंप की रौशनी में पसीने से तर-बतर हाथ में कलम साधे सफेद कागजों पर भविष्य के सुनहरे सपने लिखते जाते हैं, वो कभी छात्र तो कभी अभ्यर्थी कहलाते हैं । बचपन से किताबों के बस्तों का बोझ ढोते हुये वो कोचिंगों में लगने वाली अपार भीड़ में अधेड़ होते हैं, हॉफ-टाइम में दोस्तों के टिफिन चुराने वाले ये हाथ यहां कैंटीन के पैसे भरते हुये बड़े होते हैं, इनकी आवाज किसी सरकार-सिस्टम के सांचे में, कभी फिट नहीं होती क्योंकि ये सांचा अब खोखला है इसीलिए रोजगार के लिये चीखते ये भारत भविष्य अपने उन्हीं गुमनाम कमरों में फांसी पर झूल जाते हैं ये किताबों के बीच अपनी अर्थी सजाने वाले भारत के "लाचार विद्यार्थी" कहलाते हैं।। #छात्र हित सर्वोपरि @"निर्मेय" ©purab nirmey