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आस की देहरी पर विश्वास का एक दीपक जलाया है, बैरी ह

आस की देहरी पर विश्वास का एक दीपक जलाया है,
बैरी हवाएं हमेशा की तरह फिर चल पड़ी हैं मुझे अंधेरों की ओर धकेलने!
कह दो इनसे बस बहुत हुआ, 
एक जन्म में सारी परीक्षाएं न ले!
नहीं बची हिम्मत, न इच्छा अब तपकर कुंदन बनने की!
मैं अय ही बनी रहूँ बस, अब यही श्रेयस्कर है।


जब जब जो जो माँगा न, तब तब वो सब मिला है!
पर हर बार इस तरह मिला कि उसे मांगने का अफसोस, मलाल घर कर गया चित्त में!
क्योंकि वो मांगी मुरादें हर बार इस अजीब तरीके से पूरी हुई जिसके मिलने या पूरी होने पर ख़ुशी से ज्यादा तकलीफ़ मिली।

इस बार कुछ वक्त माँगा था। कुछ खाली वक्त जो मेरे अंदर की खाली दरारों को भर सके जो जिम्मेदारियां खुद पर ओढ़े हुए थी, उनसे कुछ समय के लिए विराम माँगा था।
 जिससे आत्मचिंतन कर सकूं। नए रास्ते तलाश सकूं और सफलता के जिस मुकाम पर मैंने संघर्षों के बाद पहला कदम रखा था, उसकी अनगिनत सीढ़ियों को फतह करने के लिए बनाई अपनी रणनीति पर चल सकूँ।

वह विराम, वह वक्त अब मिला। मगर इस तरह मिलेगा कभी कल्पना भी नहीं की थी। 
अब पुरानी जिम्मेदारियां कम हुई हैं, नई बढ़ी हैं, ढेर सारा खाली वक्त है लेकिन, चिंतन करने वाले हिस्से को चिंताओं ने घेर लिया है।
 
इस मिले वक्त के साथ एक झंझावात, एक तूफान उपहार में मिला। जिसने पूरे जीवन मे उथल पुथल मचा दी है। 
अब बचा वक्त मेरे लिए नहीं सोचता। इस तूफान से निकलने के रास्ते खोजता है। और रास्ता बेहद कठिन है लंबा है। वो खाली वक्त जिंदगी की ढलती शाम में ही मिलेगा शायद उन्हीं अनगिनत जिम्मेदारियों के साथ जिनसे अभी कुछ वक्त के लिए विराम मिला है। 

मन के मोती 18 अप्रैल 202

©Divya Joshi मझधार में

आस की देहरी पर विश्वास का एक दीपक जलाया है,
बैरी हवाएं हमेशा की तरह फिर चल पड़ी हैं मुझे अंधेरों की ओर धकेलने!
कह दो इनसे बस बहुत हुआ, 
एक जन्म में सारी परीक्षाएं न ले!
नहीं बची हिम्मत, न इच्छा अब तपकर कुंदन बनने की!
मैं अय ही बनी रहूँ बस, अब यही श्रेयस्कर है।
divyajoshi8623

Divya Joshi

Silver Star
Growing Creator

मझधार में आस की देहरी पर विश्वास का एक दीपक जलाया है, बैरी हवाएं हमेशा की तरह फिर चल पड़ी हैं मुझे अंधेरों की ओर धकेलने! कह दो इनसे बस बहुत हुआ, एक जन्म में सारी परीक्षाएं न ले! नहीं बची हिम्मत, न इच्छा अब तपकर कुंदन बनने की! मैं अय ही बनी रहूँ बस, अब यही श्रेयस्कर है।

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