मनुष्य दूसरों के लिए जिस कर्म की निन्दा करे उसे स्वयं भी न करें जो दूसरों की निन्दा करता है किन्तु स्वयं उसी निन्दा कर्म मे लगा रहता है वह उपहास का पात्र होता है उपहास उड़ाना