चार गधों को घोडे़ के साथ दौड़ लगाने का विचार आया विचार करके चारों गधों ने घोडे़ के सामने यह फरमाया- मानी जाएगी चारों की जीत जो एक भी आगे निकल आया यह अजीब शर्त सुनकर भी घोडे़ ने ' हाँ ' में सिर हिलाया । देखकर गधे मुस्कुराने लगे सुखद ध्वनि निकालने लगे जैसे उनके सोये भाग जगे दूसरे ही दिन तैयारी पर लगे । गधों को सम्मिलित शक्ति का दम्भ हुआ जैसे-तेसे, घोडे़-गधे की दौड़ का आरम्भ हुआ । तब तक नहीं रूके जब तक नहीं थके । जैसा कि परिणाम भी तय था इसमें न कही कोई संशय था । आखिरकार 'गर्दभ-दल' हार गया अश्व विजय-रेखा के पार गया । जीत का जश्न मनाते हुए घोडे़ का मन बदला चुप नहीं बैठेंगें 'गधे' लेंगे हार का बदला । क्या कीमत हो सकती है ? यह सोचते हुए वह घर आया दूसरे ही दिन गधा कागज लाया समझ गया, ट्रांसफर आॅर्डर आया । -रमेश 'लक्ष्यभेदी' चित्तौड़गढ़ हास्य-व्यंग्य