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मन के परिंदे को उड़ान सी भरनी है, मगर बेड़ियां अ

मन के परिंदे को 
उड़ान सी भरनी है, 
मगर बेड़ियां अनगिनत
 पंखों घेरे है । 
शाख से टूटे हुए पत्ते 
सा मुरझा रहा हु में,
कोई आकर हटा दे
 ये जो घने अंधेरे है ।।

"मनमीत"

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  #उड़ान #मनमीत 
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#उड़ान मनमीत  #कविता

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