जिम्मेदारियां।। कंधों पे किताबो का बोझ इतना नहीं सताता था जितना यह जिम्मेदारियों का बोझ सताता है। उम्मीदों पर खड़े उतरने की जिम्मेदारियां परिवार को संभालने की जिम्मेदारियां।। दिखती नहीं यह ज़िम्मेदारियां पर इसके बोझ मै दबा इंसान दिखता है।।। तुम्हें दिखता है शराब पीता इंसान मुझे उसमें अपनी ज़िम्मेदारियों से थका एक इंसान दिखता है।।।। तुम्हे एक कोई हस्ता खेलता चेहरा हमेशा दिखता होगा मुझे उसमें जिम्मेदारियों मै टूटा हुआ मासूम चेहरा दिखता है।।। इंसान की ज़िम्मेदारियां एक पेड़ की तरह है उस धूप मै जलना भी होगा ओर बरसात मै मुस्कुराना भी होगा बोझ को बोझ ना समझ के खुल के मुस्कुराना होगा।। ©Sourav Shukla #Texture