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वक्त के आसमान पर मै तो चला जाता हूं ।। गीत कोई ग

वक्त के आसमान पर
 मै तो चला जाता हूं ।।
गीत कोई  गाता हूं ।।
बीती बात बीत गई 
गर्मी गई  शीत गई ।।
अब निकली किरन नई 
नई  बात मै सुनाता हूं
गीत कोई  गाता हूं ।।
सारे अब है कान बहरे
चलते हुए फिर भी ठहरे।।
बिन जल भी उठ रही है
सड़क पर  अब ये लहरें।।
झूठों के बीच में ही मैं
सदा खुद को पाता हूं।।
गीत कोई  गाता हूं ।।
सत्य  तो अब छिप गया 
है झूठ के जंजाल में।।
अब तो गूंगा बहरा है
फंसा खुद के बवाल में।।
डर से अब तो क्या कहूं
सारी रात नहीं सो पाता हूं।।
गीत कोई  गाता हूं ।।
इतना गया घबरा मैं
डर डर के ही जी रहा
मयखाने में मैं जाकर
डर का जहर पी रहा।।
भरी भीण में अब तो
खुद को तनहा पाता हूं।।
गीत कोई  गाता हूं 
गीत कोई  गाता हूं ।।

©Jitendra Singh #जितेन्द्रसिंहविकल
वक्त के आसमान पर
 मै तो चला जाता हूं ।।
गीत कोई  गाता हूं ।।
बीती बात बीत गई 
गर्मी गई  शीत गई ।।
अब निकली किरन नई 
नई  बात मै सुनाता हूं
गीत कोई  गाता हूं ।।
सारे अब है कान बहरे
चलते हुए फिर भी ठहरे।।
बिन जल भी उठ रही है
सड़क पर  अब ये लहरें।।
झूठों के बीच में ही मैं
सदा खुद को पाता हूं।।
गीत कोई  गाता हूं ।।
सत्य  तो अब छिप गया 
है झूठ के जंजाल में।।
अब तो गूंगा बहरा है
फंसा खुद के बवाल में।।
डर से अब तो क्या कहूं
सारी रात नहीं सो पाता हूं।।
गीत कोई  गाता हूं ।।
इतना गया घबरा मैं
डर डर के ही जी रहा
मयखाने में मैं जाकर
डर का जहर पी रहा।।
भरी भीण में अब तो
खुद को तनहा पाता हूं।।
गीत कोई  गाता हूं 
गीत कोई  गाता हूं ।।

©Jitendra Singh #जितेन्द्रसिंहविकल