गोपी कृष्ण भगवान के प्रेम में छकी थीं, प्रेम में पीड़ित गोपियों ने एक न सुनी और कैसे अपनी पीड़ा, अपनी दुनिया, अपना सर्वस्व इन शब्दों में प्रकट कर संदेश दूत का मुख बन्द कर दिया वह थोड़े शब्दों में सुनिये- “श्याम तन श्याम मन, श्याम ही हमारो धन, आठों याम ऊधो हमें श्याम ही से काम है। श्याम हिये, श्याम जिये,श्याम बिन नाहीं तिये, अन्धे को सी लाकड़ी आधार श्याम नाम है॥ श्याम गति श्याम मति श्याम ही हैं प्राणपति, श्याम सुखदाई सो भलाई शोभा धाम है। ऊधो तुम भये बौरे पाती लेके आये दौरे, और योग कहाँ यहाँ रोम रोम श्याम है॥ यदि प्रेम की इतनी जंची दिव्य विभूतियाँ पैदा न हुई होतीं तो आज प्रेम की कीमत शायद कुछ भी न होती, जब हृदय प्रेम से विभोर हो उठता है तब उसे कुछ नहीं सूझता, तभी तो कहते हैं कि प्रेम अन्धा है। प्रेम अन्धा होता है।