"मतलब की नदी" वो बन जाते हैं बच्चे-बच्चों की परवरिश के लिए बड़े मतलबी होते हैं माँ-बाप की अक्सर छुपा लेते हैं अपने गम-बच्चो की खुशियों के लिए । वो त्याग देते हैं अपने सपने-बच्चों के सपनो के लिए बड़े मतलबी होते हैं माँ-बाप की अक्सर भुला देते हैं अपनी दूनिया-बच्चो के सपनो के लिए । वो कहते हैं ना-सबका वक़्त आता है , माँ-बाप का भी वो दौर आता है जब उन्हें बस ख़्वाइस होती है बच्चो के साथ कि-फिर भी वो दबा देते हैं अपनी ख्वाइशें-बच्चो की ख्वाइशों के लिए बड़े मतलबी होते हैं माँ-बाप की अक्सर रह लेते हैं अकेले-बच्चों की ख्वाइशों के लिए । बड़े होगए हैं हम, एक आज़ादी चाहिए, कब तक यही रहेंगे -अब बहार निकलना है , इन अल्फाज़ो को सुनकर भी नहीं पिघलते और झट से कह देते हैं , जाओ देखलो अपना-हम रहलेंगे अराम से फिर भी जाते-जाते आखिर में कह ही जाते हैं, अपना ध्यान रखना, सही में- बड़े मतलबी होते हैं माँ-बाप अपना हर दर्द छुपा लेते हैं-बच्चों के मर्हम के लिए । और ये मतलब की नदी पीड़ी दर पीड़ी यूँ ही बहती जाती है क्योंकि सही मैं बड़े मतलबी होते माँ-बाप , सिर्फ अपने बच्चों की एक मुस्कान के लिए।।। वक़्त रहते अपनी ज़रूरतों के साथ उनकी ज़रूरतें भी समझो , वरना एक दिन ऐसा वक़्त आएगा, सब वक़्त से यूँ ही कहोगे-की अब वक़्त से वक़्त की क्या शिकायत करें वक़्त ही न रहा -वक़्त ही बात है ।।। #Not for all but for maximum ! "मतलब कि नदी" माँ-बाप !🙂 #RespectThem ! & #UnderstandThem ! Be happy always 🙂 Mahadev bless you all !