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विदग्ध गोपिकामनो मनोज्ञतल्पशायिनं, नमामि कुंजकानने

विदग्ध गोपिकामनो मनोज्ञतल्पशायिनं,
नमामि कुंजकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम्।
किशोरकान्ति रंजितं दृगंजनं सुशोभितं,
गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम्।।८।।

भावार्थ–चतुरगोपिकाओं की मनोज्ञ तल्प पर शयन 
करने वाले, कुंजवन में बढ़ी हुई विरह अग्नि को पान 
करने वाले, किशोरावस्था की कान्ति से सुशोभित अंग 
वाले, अंजन लगे सुन्दर नेत्रों वाले, गजेन्द्र को ग्राह से 
मुक्त करने वाले, श्रीजी के साथ विहार करने वाले 
श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार करता हूँ। #जन्माष्टमी #janmasthami
विदग्ध गोपिकामनो मनोज्ञतल्पशायिनं,
नमामि कुंजकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम्।
किशोरकान्ति रंजितं दृगंजनं सुशोभितं,
गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम्।।८।।

भावार्थ–चतुरगोपिकाओं की मनोज्ञ तल्प पर शयन 
करने वाले, कुंजवन में बढ़ी हुई विरह अग्नि को पान 
करने वाले, किशोरावस्था की कान्ति से सुशोभित अंग 
वाले, अंजन लगे सुन्दर नेत्रों वाले, गजेन्द्र को ग्राह से 
मुक्त करने वाले, श्रीजी के साथ विहार करने वाले 
श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार करता हूँ। #जन्माष्टमी #janmasthami