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मैं सुधर जाऊंगी (कृप्या अनुशीर्षक में पढ़ें) हमारे

मैं सुधर जाऊंगी

(कृप्या अनुशीर्षक में पढ़ें) हमारे समाज के दो हिस्से हैं.. एक हिस्से में औरतों को आत्मनिर्भर बनाने की बात की जाती है, और एक हिस्सा कमजोर औरतों को ही औरत होने का दर्जा देता है।
हम सभी एक स्वतंत्र विचार वाली और आत्मनिर्भर औरत को स्वीकार कर ही नहीं पाते, क्योंकि हमारी सोच में औरत की छवि एक दबी हुई आवाज़ की तरह है। जिसे हम सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। औरत को हम या तो दायित्वों में डाल व्यस्त कर देते हैं या मनोरंजन के साधन की तरह इस्तेमाल कर लेते हैं..
औरतों की कमजोरी की वज़ह क्या है..? दरअसल वज़ह हम खुद हैं.. क्योंकि हम उन्हें ये एहसास करा, की तुम कमजोर हो हमेशा उनके साथ खड़े हो जाते हैं, उनकी सहायता करने लगते हैं.. जबकि उनको ना ही सहारा दिया जाना चाहिए और ना ही सुरक्षा.. बल्कि उनको खुद की सुरक्षा करना सिखाना चाहिए, जिससे कि वो खुद की सुरक्षा के लिए प्रयास करें.. उनको हर वक़्त नज़र में रखने के बजाय, नज़र से दूर करना चाहिए.. उनको एहसास दिलाना चाहिए कि उनसे ज़्यादा मज़बूत कोई नहीं है। शायद इससे वो आत्मनिर्भर भी होंगी और आत्मविश्वासी भी बनेंगी.. खुद के लिए लड़ना सीखेंगी..

लेकिन कहीं ना कहीं यह सब बातें आपका समर्थन नहीं पा सकेंगी.. क्योंकि हमेशा औरत आपकी सोच के हिसाब से ढलती जाएगी....आप औरत का दर्जा भी एक कमजोर और आप पर पूरी तरह से निर्भर औरत को ही देना चाहेंगे.. क्योंकि हमेशा से ही यही छवि उसे आदर्शवादी बनाती है..

हाँ मैं सुधर जाऊंगी, और बन जाऊंगी आदर्श नारी..
नज़रें नीची रखना सीख जाऊंगी, और सीख जाऊंगी ज़ुल्मों को सहना, उम्मीदों को दफन करना अपने ही सीने में..
मैं सुधर जाऊंगी

(कृप्या अनुशीर्षक में पढ़ें) हमारे समाज के दो हिस्से हैं.. एक हिस्से में औरतों को आत्मनिर्भर बनाने की बात की जाती है, और एक हिस्सा कमजोर औरतों को ही औरत होने का दर्जा देता है।
हम सभी एक स्वतंत्र विचार वाली और आत्मनिर्भर औरत को स्वीकार कर ही नहीं पाते, क्योंकि हमारी सोच में औरत की छवि एक दबी हुई आवाज़ की तरह है। जिसे हम सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। औरत को हम या तो दायित्वों में डाल व्यस्त कर देते हैं या मनोरंजन के साधन की तरह इस्तेमाल कर लेते हैं..
औरतों की कमजोरी की वज़ह क्या है..? दरअसल वज़ह हम खुद हैं.. क्योंकि हम उन्हें ये एहसास करा, की तुम कमजोर हो हमेशा उनके साथ खड़े हो जाते हैं, उनकी सहायता करने लगते हैं.. जबकि उनको ना ही सहारा दिया जाना चाहिए और ना ही सुरक्षा.. बल्कि उनको खुद की सुरक्षा करना सिखाना चाहिए, जिससे कि वो खुद की सुरक्षा के लिए प्रयास करें.. उनको हर वक़्त नज़र में रखने के बजाय, नज़र से दूर करना चाहिए.. उनको एहसास दिलाना चाहिए कि उनसे ज़्यादा मज़बूत कोई नहीं है। शायद इससे वो आत्मनिर्भर भी होंगी और आत्मविश्वासी भी बनेंगी.. खुद के लिए लड़ना सीखेंगी..

लेकिन कहीं ना कहीं यह सब बातें आपका समर्थन नहीं पा सकेंगी.. क्योंकि हमेशा औरत आपकी सोच के हिसाब से ढलती जाएगी....आप औरत का दर्जा भी एक कमजोर और आप पर पूरी तरह से निर्भर औरत को ही देना चाहेंगे.. क्योंकि हमेशा से ही यही छवि उसे आदर्शवादी बनाती है..

हाँ मैं सुधर जाऊंगी, और बन जाऊंगी आदर्श नारी..
नज़रें नीची रखना सीख जाऊंगी, और सीख जाऊंगी ज़ुल्मों को सहना, उम्मीदों को दफन करना अपने ही सीने में..

हमारे समाज के दो हिस्से हैं.. एक हिस्से में औरतों को आत्मनिर्भर बनाने की बात की जाती है, और एक हिस्सा कमजोर औरतों को ही औरत होने का दर्जा देता है। हम सभी एक स्वतंत्र विचार वाली और आत्मनिर्भर औरत को स्वीकार कर ही नहीं पाते, क्योंकि हमारी सोच में औरत की छवि एक दबी हुई आवाज़ की तरह है। जिसे हम सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। औरत को हम या तो दायित्वों में डाल व्यस्त कर देते हैं या मनोरंजन के साधन की तरह इस्तेमाल कर लेते हैं.. औरतों की कमजोरी की वज़ह क्या है..? दरअसल वज़ह हम खुद हैं.. क्योंकि हम उन्हें ये एहसास करा, की तुम कमजोर हो हमेशा उनके साथ खड़े हो जाते हैं, उनकी सहायता करने लगते हैं.. जबकि उनको ना ही सहारा दिया जाना चाहिए और ना ही सुरक्षा.. बल्कि उनको खुद की सुरक्षा करना सिखाना चाहिए, जिससे कि वो खुद की सुरक्षा के लिए प्रयास करें.. उनको हर वक़्त नज़र में रखने के बजाय, नज़र से दूर करना चाहिए.. उनको एहसास दिलाना चाहिए कि उनसे ज़्यादा मज़बूत कोई नहीं है। शायद इससे वो आत्मनिर्भर भी होंगी और आत्मविश्वासी भी बनेंगी.. खुद के लिए लड़ना सीखेंगी.. लेकिन कहीं ना कहीं यह सब बातें आपका समर्थन नहीं पा सकेंगी.. क्योंकि हमेशा औरत आपकी सोच के हिसाब से ढलती जाएगी....आप औरत का दर्जा भी एक कमजोर और आप पर पूरी तरह से निर्भर औरत को ही देना चाहेंगे.. क्योंकि हमेशा से ही यही छवि उसे आदर्शवादी बनाती है.. हाँ मैं सुधर जाऊंगी, और बन जाऊंगी आदर्श नारी.. नज़रें नीची रखना सीख जाऊंगी, और सीख जाऊंगी ज़ुल्मों को सहना, उम्मीदों को दफन करना अपने ही सीने में.. #रूपकीबातें