तू जाने को कह रहा था मुझसे, मैं चाहती तो एक आवाज़ देकर रोक भी सकती थी। ख़ामोश थी बस इसीलिए कि, शायद समझ जाओ खामोशी हमारी। पर अंजान थे कि आपको हमारी खामोशी कहां समझ आती है। हा हमारी खामोशी से फर्क किसको पड़ता है, हम तो बेवजह उनसे उम्मीद लगाते हैं। अगर कह दो अपनी तरफ से दो लफ्ज़ भी, तो उन्हें वो काटों की तरह चुभ जाते हैं। चुभती हमें भी है बातें उनकी, पर हम रिश्ते के खातिर चुप रह जाते हैं। शायद वो समझे कभी खामोशी हमारी, बस इसी इंतजार में हम खामोश हो जाते हैं। ©Ayushi Vishwakarma #HeartBreak Vipin Sheshkar Noor International nareshthamnal Jyotika Sohan kumar