मेरी ज़बान से ज़ियादा शकल बोलती है, क्या कहना है, वो मेरी ग़ज़ल बोलती है, मैं नहीं मानता इन हाथों की लकीरों को, मेरी क़लम , आने वाला कल बोलती है, © कमल कर्मा"के.के." क़लम बोलती है